Artificial Colors

Artificial Colors: कर्नाटक सरकार ने हाल ही में वेज, चिकन, मछली और अन्य कबाबों में इस्तेमाल होने वाले आर्टिफिशियल कलर्स पर पाबंदी लगा दी है। इसका मुख्य कारण यह है कि इन कलर्स में सनसेट येलो और कार्मोसिन शामिल हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं माने गए हैं। इस पर पाबंदी लगाने का निर्णय खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता अधिनियम 2006 ( Food Safety and Standards Authority) की धारा 59 के तहत लिया गया है, जिसके अनुसार ऐसे मामले में कठोर कार्रवाई की जा सकती है।

39 तरह के कबाबों पर रोक

बताया जा रहा है कि जनता की ओर से इस मामले में दाखिल की गई शिकायतों और मीडिया रिपोर्ट्स पर गौर करने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने पूरे राज्य में बेचे जाने वाले 39 तरह के कबाबों के सैंपल इकट्ठा किए और इन्हें जांच के लिए भेज दिया गया, जिसमें पाया गया कि इन खाद्य उत्पादों में सनसेट येलो (Sunset yellow) और कार्मोसिन आर्टिफिशियल (Carmosin Artificial) रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सेहत के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है।

स्वास्थ्य पर क्या है प्रभाव

  1. कैंसर का खतरा: आर्टिफिशियल कलर्स (Artificial Colors) में मौजूद कार्सिनोजेनिक और म्यूटाजेनिक रसायन हो सकते हैं, जो कैंसर के रिस्क को बढ़ा सकते हैं। विशेष रूप से सनसेट येलो का उपयोग कैंसर से जुड़ी समस्याओं में वृद्धि का कारण बन सकता है।
  2. हार्ट और डायबिटीज: अनुसंधानों में देखा गया है कि अधिक मात्रा में कार्मोसिन का सेवन हृदय स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और डायबिटीज के लिए भी खतरा बढ़ा सकता है।
  3. हानिकारक प्रभाव: ये केमिकल्स बच्चों और युवाओं के लिए विशेष रूप से अधिक हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि उनके शारीरिक विकास और हार्मोनल संतुलन पर असर पड़ सकता है।

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सुरक्षा के लिए जरूरी ये प्रयास

राज्य स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने इस मुद्दे पर जानकारी देते हुए कहा कि पैकेज्ड फूड आइटम्स में  कम मात्रा में ‘टार्ट्राजीन’ का इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन रेस्तरां या किसी फिर किसी होटल या ढाबे में इसका ज्यादा इस्तेमाल सेहत के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकता है। इस प्रकार के रेस्तरां या होटल में उचित नियंत्रण और निगरानी की जरूरत है। वह आगाह करते हैं कि अधिक मात्रा में आर्टिफिशियल कलर्स का उपयोग सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है और उससे बचने के लिए लोगों को सजग रहने की जरूरत है।

इस प्रकार, खाद्य सुरक्षा में यह नई पहल न सिर्फ सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने में मदद करेगी, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी स्वास्थ्यपूर्ण जीवन की रक्षा करेगी।

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