Hanuman Jayanti 2024: हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर, विश्वभर के भक्तों ने साथ मिलकर भगवान हनुमान को समर्पित किया। जो हिंदू पौराणिक कथाओं में भक्ति, शक्ति और साहस का प्रतीक है। हर साल चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान हनुमान की उपासना करने के लिए भक्त मंदिरों में भीड़ लगाए हुए है। उनकी विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन किया गया। साथ ही, विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों किये गये।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बजरंगबली बहुत बलवान और निडर है। उनके समक्ष कोई भी शक्ति टिक नहीं पाती है। इसके अलावा हनुमान जी जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं, उनकी कृपा से कार्यों में आ रही बाधाएं जल्द दूर होने लगती है।
चैत्र माह की क्या है विशेषता
ग्रंथों के अनुसार, एक बार भूख से बेहाल बाल हनुमान ने भोजन की लालसा में फल समझकर सूर्यदेव को निगल लिया। जब इंद्रदेव ने उन्हें भगवान सूर्य को मुख से निकालने को कहा, तो उन्होंने मना कर दिया, जिसकी वजह से देवराज इंद्र क्रोध में आ गए। उन्होंने हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर दिया। जिससे वे मूर्छित हो गए। इस वाक्य को देख पवनदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने पूरे जगत से वायु का प्रवाह रोक दिया। इसके बाद ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं ने अंजनी पुत्र को दूसरा जीवन प्रदान किया और अपनी-अपनी कुछ दिव्य शक्तियां भी दी। यह घटना चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि के दौरान हुई थी, तभी से इस दिन को भी हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
जन्म को लेकर क्या है मान्यता
कहा जाता है कि हनुमान जी भगवान शिव के 11वां रुद्र अवतार है। जब विष्णु जी ने धर्म की स्थापना के लिए इस धरती पर प्रभु श्री राम के रूप में जन्म लिया, तब भगवान शिव ने उनकी मदद के लिए हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था। दूसरी ओर राजा केसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ तपस्या कर रहे थे। इस तपस्या का दृश्य देख भगवान शिव प्रसन्न हो उठें और उन दोनों से मनचाहा वर मांगने को कहा।
इस बात पर माता अंजना खुश हो गई और उनसे कहा कि मुझे एक ऐसा पुत्र प्राप्त हो, जो बल में रुद्र की तरह बलि, गति में वायु की गतिमान और बुद्धि में गणपति के समान तेजस्वी हो। यह बात सुनकर शिव जी ने अपनी रौद्र शक्ति के अंश को पवन देव के रूप में यज्ञ कुंड में अर्पित कर दिया। बाद में यही शक्ति माता अंजना के गर्भ में प्रविष्ट हुई। फिर हनुमान जी का जन्म हुआ था।
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हनुमान जी के 108 नाम
- भीमसेन सहायकृते
- कपीश्वराय
- महाकायाय
- कपिसेनानायक
- कुमार ब्रह्मचारिणे
- महाबलपराक्रमी
- रामदूताय
- अभयदाता
- केसरी सुताय
- शोक निवारणाय
- अंजनागर्भसंभूताय
- विभीषणप्रियाय
- वज्रकायाय
- रामभक्ताय
- लंकापुरीविदाहक
- सुग्रीव सचिवाय
- पिंगलाक्षाय
- हरिमर्कटमर्कटाय
- रामकथालोलाय
- सीतान्वेणकर्त्ता
- वज्रनखाय
- रुद्रवीर्य
- वायु पुत्र
- रामभक्त
- वानरेश्वर
- ब्रह्मचारी
- आंजनेय
- महावीर
- हनुमत
- मारुतात्मज
- तत्वज्ञानप्रदाता
- सीता मुद्राप्रदाता
- अशोकवह्रिकक्षेत्रे
- सर्वमायाविभंजन
- सर्वबन्धविमोत्र
- रक्षाविध्वंसकारी
- परविद्यापरिहारी
- परमशौर्यविनाशय
- परमंत्र निराकर्त्रे
- परयंत्र प्रभेदकाय
- सर्वग्रह निवासिने
- सर्वदु:खहराय
- सर्वलोकचारिणे
- मनोजवय
- पारिजातमूलस्थाय
- सर्वमूत्ररूपवते
- सर्वतंत्ररूपिणे
- सर्वयंत्रात्मकाय
- सर्वरोगहराय
- प्रभवे
- सर्वविद्यासम्पत
- भविष्य चतुरानन
- रत्नकुण्डल पाहक
- चंचलद्वाल
- गंधर्वविद्यात्त्वज्ञ
- कारागृहविमोक्त्री
- सर्वबंधमोचकाय
- सागरोत्तारकाय
- प्रज्ञाय
- प्रतापवते
- बालार्कसदृशनाय
- दशग्रीवकुलान्तक
- लक्ष्मण प्राणदाता
- महाद्युतये
- चिरंजीवने
- दैत्यविघातक
- अक्षहन्त्रे
- कालनाभाय
- कांचनाभाय
- पंचवक्त्राय
- महातपसी
- लंकिनीभंजन
- श्रीमते
- सिंहिकाप्राणहर्ता
- लोकपूज्याय
- धीराय
- शूराय
- दैत्यकुलान्तक
- सुरारर्चित
- महातेजस
- रामचूड़ामणिप्रदाय
- अंजली सुत
- मैनाकपूजिताय
- मार्तण्डमण्डलाय
- विनितेन्द्रिय
- रामसुग्रीव सन्धात्रे
- महारावण मर्दनाय
- स्फटिकाभाय
- वागधीक्षाय
- नवव्याकृतपंडित
- चतुर्बाहवे
- दीनबन्धवे
- महात्मने
- भक्तवत्सलाय
- अपराजित
- शुचये
- वाग्मिने
- दृढ़व्रताय
- कालनेमि प्रमथनाय
- दान्ताय
- शान्ताय
- प्रसनात्मने
- शतकण्ठमदापहते
- केसरी नंदन
- अनघ
- अकाय
- तत्त्वगम्य
- लंकारि