RBI MPC Meeting: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की मीटिंग आज यानी 5 जून बुधवार से शुरू होगी। जो 7 जून तक चलेगी। यह वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी मीटिंग होगी और इससे देश की आर्थिक दिशा को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे।
रेपो रेट में बदलाव की उम्मीद नहीं
जानकारों के अनुसार, इस मीटिंग में RBI द्वारा रेपो रेट यानी ब्याज दरों में किसी भी बदलाव की संभावना नहीं है। वर्तमान में रेपो रेट 6.50% पर स्थिर बनी हुई है। अप्रैल में हुई पिछली बैठक में भी RBI ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया था।
वित्त वर्ष 2022-23 में रेपो रेट में 6 बार बदलाव
वित्त वर्ष 2022-23 में RBI ने रेपो रेट में कुल 6 बार बदलाव किया, जिससे यह 2.50% बढ़ाई गई थी। उस साल की पहली मीटिंग अप्रैल 2022 में हुई थी, जिसमें रेपो रेट को 4% पर स्थिर रखा गया था। लेकिन मई 2022 में इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया गया था। 22 मई 2020 के बाद यह पहली बार था जब रेपो रेट में बदलाव किया गया। इसके बाद जून 2022 की मीटिंग में 0.50% की वृद्धि से रेपो रेट 4.90% हो गई। फिर अगस्त 2022 में इसे 0.50% बढ़ाकर 5.40% किया गया।
सितंबर 2022 में रेपो रेट 5.90% पर पहुंच गई और दिसंबर 2022 में यह 6.25% हो गई। फरवरी 2023 में वित्त वर्ष 2022-23 की आखिरी मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में इसे बढ़ाकर 6.50% कर दिया गया।
मौजूदा स्थिति
वर्तमान में रेपो रेट 6.50% पर बनी हुई है, और विशेषज्ञों का मानना है कि इस मीटिंग में भी इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। इस मीटिंग के निर्णयों का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल सकता है, और इसलिए इसे ध्यान से देखना महत्वपूर्ण है।
इस तरह की मीटिंग्स हर दो महीने में होती हैं, जिसमें RBI मौद्रिक नीति पर विचार-विमर्श करता है और आवश्यक निर्णय लेता है। यह मीटिंग विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी मीटिंग है, जिसमें देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए प्रमुख नीतिगत निर्णय लिए जा सकते हैं।
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रेपो रेट क्यों बढ़ाता या घटाता है RBI?
रेपो रेट महंगाई को नियंत्रित करने के लिए RBI का एक प्रभावी टूल है। जब महंगाई बहुत अधिक होती है, तो RBI रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। रेपो रेट बढ़ने पर बैंकों के लिए RBI से कर्ज लेना महंगा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, बैंक अपने ग्राहकों को लोन महंगा कर देते हैं, जिससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम हो जाता है। मनी फ्लो कम होने से डिमांड में कमी आती है और महंगाई घटने लगती है।
उदाहरण के लिए, जब महंगाई दर बहुत अधिक होती है, तो RBI रेपो रेट को बढ़ाकर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। इससे बैंकों को महंगे दर पर कर्ज मिलती है, और वे भी अपने ग्राहकों से अधिक ब्याज दर वसूलते हैं। इस प्रकार, खर्च करने की क्षमता घटती है और महंगाई कम होती है।
इसी प्रकार, जब इकोनॉमी मंदी के दौर से गुजर रही होती है, तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत होती है। ऐसे में RBI रेपो रेट को कम कर देता है। इससे बैंकों को सस्ते दर पर कर्ज मिलता है और वे अपने ग्राहकों को भी सस्ते दर पर लोन देने लगते हैं।
उदाहरण के लिए, कोरोना काल में जब आर्थिक गतिविधियाँ ठप हो गई थीं, तो डिमांड में भारी कमी आई थी। इस स्थिति में, RBI ने ब्याज दरों को कम करके इकोनॉमी में मनी फ्लो बढ़ाने का प्रयास किया था, जिससे आर्थिक गतिविधियों में सुधार हो सके।
रिवर्स रेपो रेट के बढ़ने-घटने का प्रभाव
रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंक RBI के पास अपना अतिरिक्त पैसा जमा कर ब्याज प्राप्त करते हैं। जब RBI को मार्केट से लिक्विडिटी कम करनी होती है, तो वह रिवर्स रेपो रेट में वृद्धि करता है। इससे बैंकों के लिए अपने अतिरिक्त धन को RBI के पास जमा करना लाभदायक हो जाता है।
हाई इंफ्लेशन के दौरान, RBI रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है। इससे बैंक अपने फंड को RBI के पास जमा करना ज्यादा पसंद करते हैं, और उनके पास ग्राहकों को लोन देने के लिए कम फंड बचता है। इस प्रकार, बाजार में लिक्विडिटी कम हो जाती है और महंगाई को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
इस प्रकार, रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट दोनों ही RBI के महत्वपूर्ण टूल हैं, जिनका उपयोग करके वह इकोनॉमी में मनी फ्लो और महंगाई को नियंत्रित करता है।
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