Bareillyबरेली जिले में एक मुस्लिम युवती ने एक गैर-मुस्लिम युवक से शादी की और इसके लिए उसने अपना धर्म भी परिवर्तन कर लिया। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद, लड़की के परिवार ने उसका शव मायके लाकर अंतिम संस्कार की तैयारी की।

उत्तर प्रदेश के बरेली (Bareilly) शहर में एक हैरान कर देने वाली और धर्मिक दृष्टि से अभूतपूर्व घटना सामने आई है, जहां एक मुस्लिम युवती को बिना नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़े ही सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। बताया जा रहा है कि यह बरेली ही नहीं, दुनिया में ऐसा पहला मामला है जब किसी मुस्लिम लड़की को बिना जनाज़े की नमाज़ के दफनाया गया हो।

परिजनों और स्थानीय लोगों के अनुसार, युवती की मृत्यु के बाद कुछ विवादित परिस्थितियों में यह निर्णय लिया गया। इस फैसले को लेकर इलाके में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कई लोगों ने इसे शरीयत के खिलाफ बताया, जबकि कुछ का मानना है कि परिवार की मजबूरी या सामाजिक दबाव के कारण ऐसा हुआ होगा।

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धार्मिक विद्वानों की प्रतिक्रिया

इस पूरे घटनाक्रम पर बरेली के कुछ मौलानाओं और इस्लामिक विद्वानों ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि नमाज़-ए-जनाज़ा इस्लामी रीति-रिवाज का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसके बिना दफनाना शरई दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जाता। हालांकि, परिजन इस पर कोई आधिकारिक बयान देने से बचते नजर आए।

प्रशासन मौन, स्थानीय पुलिस कर रही पड़ताल

स्थानीय पुलिस का कहना है कि अभी तक इस मामले में कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है, लेकिन वे स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। यदि परिवार या समुदाय के किसी सदस्य द्वारा कोई आपत्ति जताई जाती है, तो जांच की जा सकती है।

क्या था पूरा मामला चलिए जानते हैं
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक मुस्लिम युवती ने एक गैर-मुस्लिम युवक से शादी की और इसके लिए उसने अपना धर्म भी परिवर्तन कर लिया। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद, लड़की के परिवार ने उसका शव मायके लाकर अंतिम संस्कार की तैयारी की।

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जब गांव के लोगों को युवती की मृत्यु और उसके धर्म परिवर्तन की जानकारी हुई, तो स्थानीय कब्रिस्तान में दफनाने से इनकार कर दिया गया। साथ ही, गांव के इमाम ने भी जनाज़े की नमाज़ पढ़ाने से मना कर दिया।

मामले को लेकर मार्गदर्शन के लिए इसे मरकज़ी दारुल इफ्ता, बरेली भेजा गया। वहां से जवाब मिला कि चूंकि युवती ने इस्लाम छोड़ दिया था, इसलिए शरियत के अनुसार उसे “मुर्तद” माना जाएगा। ऐसे में उसके जनाज़े की नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती और न ही उसे मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाया जा सकता है।

नतीजतन, युवती को बिना जनाज़े की नमाज़ के दफन किया गया।

सवाल उठ रहे हैं…

क्या यह केवल पारिवारिक फैसला था या इसके पीछे कोई दबाव था?
क्या इस तरह की घटनाएं भविष्य में समुदाय में विभाजन की वजह बन सकती हैं?
क्या धार्मिक रीति-रिवाजों की अवहेलना की गई है?

By Javed

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