Economic Survey

Economic Survey: आर्थिक सर्वे (Economic Survey) भारत की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण प्रस्तुत करने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह रिपोर्ट हर वित्तीय वर्ष के अंत में भारत सरकार द्वारा पेश की जाती है और इसमें देश की आर्थिक विकास दर, वित्तीय स्थिरता, और नीतियों पर विस्तृत जानकारी दी जाती है। आर्थिक सर्वे का महत्व न केवल सरकार की आर्थिक योजनाओं को संवारने में है, बल्कि यह देश के आर्थिक भविष्य की दिशा भी निर्धारित करता है।

बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कल यानी 23 जुलाई को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी। इससे पहले सोमवार यानी 22 जुलाई को लोकसभा के बजट सत्र की शुरुआत हुई। इस दौरान वित्त मंत्री ने सदन के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण रखेगी। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 पेश किया जायेगा। आइए जानते हैं संसद में बजट पेश किए जाने से एक दिन पहले पेश किया जाने वाला आर्थिक सर्वेक्षण के बारें में।

आर्थिक सर्वे क्या है?

आर्थिक सर्वे एक रिपोर्ट है जो देश की आर्थिक स्थिति की गहराई से समीक्षा करती है। यह रिपोर्ट वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की जाती है और संसद में बजट सत्र के दौरान प्रस्तुत की जाती है। यह दस्तावेज सरकार को मौजूदा आर्थिक हालात, सुधार की ज़रूरतें, और अगले वित्तीय वर्ष के लिए नीतिगत सुझाव प्रदान करता है।

आर्थिक सर्वे की शुरुआत कब हुई?

भारत में आर्थिक सर्वे की शुरुआत स्वतंत्रता के बाद की गई थी। पहली बार 1950-51 के वित्तीय वर्ष के लिए आर्थिक सर्वे प्रस्तुत किया गया था। इसे वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है और यह दस्तावेज संसद में प्रस्तुत किया जाता है, जो बजट सत्र के साथ मेल खाता है।

देश के लिए आर्थिक सर्वे का क्या है महत्व

  1. नीतिगत दिशा-निर्देशन: आर्थिक सर्वे में प्रदान की गई जानकारी सरकार को अगले वित्तीय वर्ष के बजट में सुधार करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश देती है। इससे सरकार की नीतियों को बेहतर बनाया जा सकता है और आर्थिक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है।
  2. आर्थिक पूर्वानुमान: यह रिपोर्ट देश की आर्थिक वृद्धि की भविष्यवाणी करती है, जो निवेशकों, उद्योगपतियों, और नीति निर्माताओं को निर्णय लेने में सहायक होती है। इससे आर्थिक संकट की स्थिति को पूर्वानुमानित किया जा सकता है और सुधारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं।
  3. पारदर्शिता और जवाबदेही: आर्थिक सर्वे सरकार की आर्थिक नीतियों की पारदर्शिता बढ़ाता है और सार्वजनिक जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। यह नागरिकों को सरकार की आर्थिक प्राथमिकताओं और योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

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जानें, क्या है आर्थिक सर्वे के दो हिस्से

  1. आर्थिक विश्लेषण: इस हिस्से में देश की आर्थिक स्थिति का व्यापक विश्लेषण किया जाता है। इसमें आर्थिक वृद्धि दर, मुद्रास्फीति, रोजगार, व्यापार संतुलन, और अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों की समीक्षा की जाती है। यह भाग आर्थिक गतिविधियों के मौजूदा ट्रेंड्स और चुनौतियों को उजागर करता है।
  2. नीतिगत सुझाव: इस हिस्से में सरकार को आगामी वित्तीय वर्ष के लिए नीतिगत सुझाव और सिफारिशें दी जाती हैं। इसमें आर्थिक सुधारों, बजट प्रस्तावों, और नीतिगत बदलावों की अनुशंसाएँ शामिल होती हैं जो आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होती हैं।

आर्थिक सर्वे कैसे तैयार होता है?

आर्थिक सर्वे को तैयार करने की प्रक्रिया में विभिन्न मंत्रालयों, सरकारी विभागों, और सांख्यिकी संगठनों द्वारा एकत्रित आंकड़ों और सूचनाओं का विश्लेषण किया जाता है। इसमें सरकारी योजनाओं की समीक्षा, आर्थिक ट्रेंड्स की जांच, और संभावित सुधारों पर विचार किया जाता है। रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले विभिन्न विशेषज्ञों और आर्थिक सलाहकारों से परामर्श लिया जाता है।

आर्थिक सर्वे एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो देश की आर्थिक स्थिति और भविष्य की नीतियों को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है। यह रिपोर्ट सरकार को न केवल वर्तमान आर्थिक हालात का जायजा लेने में मदद करती है, बल्कि भविष्य के सुधारात्मक कदम उठाने के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान करती है। आर्थिक सर्वे की जानकारी से न केवल नीति निर्माताओं को मदद मिलती है, बल्कि आम नागरिकों को भी देश की आर्थिक दिशा और योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

आर्थिक सर्वेक्षण से जुड़ी इन टर्मिनोलॉजी को जानें

  • वित्तीय वर्ष: वित्तीय वर्ष (Financial Year) की शुरुआत 1 अप्रैल से होती है और यह अगले साल 31 मार्च तक चलता है। 
  • बजट अनुमान (Budget Estimates): वित्तीय वर्ष में सरकार ने जो कमाया और खर्च किया उसे बजट अनुमान (Budget Estimates) कहा जाता है।
  • राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit): राजकोषीय घाटा उस समय उपयोग किया जाता है जब सरकार की कमाई उसके खर्च से कम होती है।
  • राजस्व घाटा (Revenue Deficit): राजस्व घाटा का मतलब होता है कि सरकार की कमाई अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार नहीं हुई है। 
  • व्यापार घाटा (Trade Deficit):  व्यापार घाटा का अर्थ होता है कि किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक है। 
  • विनिवेश (Disinvestment): जब सरकार सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचती है, तो इस प्रक्रिया को विनिवेश कहा जाता है। 

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