Holi Special: होलिका, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। वह एक असुर राजकुमारी थी और उसे वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती।
होली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे रंगों का पर्व भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रेम, सौहार्द और उल्लास का प्रतीक है।
होली का पर्व और होलिका दहन
होलिका की इसी पराजय और प्रह्लाद की विजय के प्रतीकस्वरूप होली का त्योहार मनाया जाता है। होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जिसमें बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है।
होली मनाने के पीछे की प्रमुख कथाएँ
1️⃣ प्रह्लाद और होलिका की कथा
होलिका दहन की परंपरा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जुड़ी हुई है।
- असुर राजा हिरण्यकश्यप चाहता था कि उसका पुत्र प्रह्लाद केवल उसी की पूजा करे, लेकिन प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था।
- हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था।
- होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की योजना बनाई, ताकि प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाए।
- लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका खुद जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया।
- इसी घटना के प्रतीकस्वरूप होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।
2️⃣ राधा-कृष्ण और ब्रज की होली
- कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने गहरे रंग के कारण खुद को गोरी राधा के साथ असमान समझते थे।
- माता यशोदा ने उन्हें राधा और अन्य गोपियों पर रंग लगाने का सुझाव दिया, जिससे होली खेलने की परंपरा शुरू हुई।
- वृंदावन और बरसाने में लट्ठमार होली भी प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएँ पुरुषों को लाठियों से मारकर मज़ाकिया अंदाज में होली खेलती हैं।
3️⃣ कामदेव की कथा
- एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव ध्यान में लीन थे, तब देवताओं ने प्रेम के देवता कामदेव से अनुरोध किया कि वे शिवजी का ध्यान भंग करें।
- कामदेव ने शिवजी पर पुष्प बाण चलाया, जिससे शिवजी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया।
- बाद में, शिवजी की पत्नी माता पार्वती की प्रार्थना से कामदेव को पुनर्जीवित किया गया।
- इस घटना की याद में होली मनाई जाती है, और इसे “फाल्गुनोत्सव” भी कहा जाता है।
होली का महत्व
✅ बुराई पर अच्छाई की जीत: होलिका दहन हमें सिखाता है कि अधर्म और अहंकार का अंत निश्चित है।
✅ प्रेम और सौहार्द का संदेश: रंगों से खेलकर समाज में भाईचारे और प्रेम का प्रसार होता है।
✅ ऋतु परिवर्तन का संकेत: यह त्योहार बसंत ऋतु में आता है, जिससे नई ऊर्जा और खुशहाली का प्रतीक बनता है।
✅ सामाजिक मेल-मिलाप: इस दिन गिले-शिकवे भुलाकर सभी लोग एक-दूसरे को गले लगाते हैं और आपसी प्रेम बढ़ाते हैं।
कैसे मनाई जाती है होली?
- पहला दिन: होलिका दहन किया जाता है, जिसमें लकड़ियों और उपलों का जलाकर असत्य और अहंकार के नाश का प्रतीकात्मक रूप से प्रदर्शन किया जाता है।
- दूसरा दिन: जिसे “रंग वाली होली” कहा जाता है, इस दिन लोग रंग, गुलाल और अबीर लगाकर होली खेलते हैं।
- गुजिया, ठंडाई और पकवानों का आनंद लिया जाता है।
- घर-घर में भजन-कीर्तन और नाच-गाना होता है।
होलीका किस जाति की थीं?
- होलिका असुर जाति से थीं। वे असुरराज हिरण्यकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ थीं। असुरों को प्राचीन हिंदू ग्रंथों में एक शक्तिशाली लेकिन अहंकारी और अधार्मिक जाति के रूप में वर्णित किया गया है, जो देवताओं के विरोधी माने जाते थे।
- हालांकि, असुर जाति का सीधा अर्थ राक्षस या दुष्ट प्राणी नहीं होता, बल्कि वे एक विशेष समुदाय थे जो देवताओं से अलग माने जाते थे। कई असुर भी ज्ञान, शक्ति और तपस्या में अत्यंत निपुण थे।
निष्कर्ष
होली केवल रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि सद्भावना, प्रेम और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह हमें रंग, उमंग और उत्साह से जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
सीख: होलिका दहन हमें यह सिखाता है कि अहंकार, अधर्म और अन्याय का अंत निश्चित होता है, और सच्ची भक्ति व अच्छाई की हमेशा विजय होती है।