Ramchandra BasewalRamchandra Basewal

( नब्बे की उम्र पाते रामचंद्र बसेवाला (Ramchandra Basewal) बुढ़ापा पेंशन भी नहीं लेते। वे इस पेंशन को मेहनत की नेक कमाई नहीं मानते। इसलिए ये पैसा लेने का मन नहीं करता इनका। जो है उसी में संतोष करते है, बिल्कुल साधा जीवन जीते है, अपने कपड़े खुद सिलते है, ऐसा भी नहीं है घर में दम है, आर्थिक रूप से सशक्त है, लेकिन ये अपनी आत्मा की आवाज सुनते है और रूखी-सूखी रोटी से गुजारा ही सही मानते है, एक बार खुद के खाते में आए 12500 रुपए लौटाने खुद बैंक पहुंचे और बोले ये मेरे नहीं है वापस निकालो। ऐसी अद्वितीय सोच के धनी है बड़वा के ये पूजनीय बुजुर्ग।)

-डॉo सत्यवान सौरभ

गांव बड़वा आज भी ऐसी शख्सियत का धनी है जो अपने नेक इरादों पर गर्व करते है और सबका भला चाहते है जिनको बेमानी का एक पैसा पसंद नही। चाहे गरीबी में प्राण देने पड़े मगर अपने वसूलों से समझौता किसी कीमत पर नहीं।

जी हां, एक ऐसे ही कोहिनूर है गांव बड़वा के 1932 ईसवी में जन्मे रामचंद्र बसेवाल। जिन्होंने गांव बड़वा की कई पीढ़ियां देखी है, राजा-महाराजाओं और अंग्रेजों का राज देखा है। वो बताते है कि उनको वो दिन आज भी याद है, जब अंबाला-जयपुर नेशनल हाईवे कच्चा रास्ता होता था। आने जाने के साधन केवल पशु होते थे। मोटर गाडियां नहीं थी। पैसे की कीमत थी। गांव में ठाकुरों और सेठ लोगों की तूती बोलती थी।

ये भी पढ़े: एक मंत्री ऐसे भी, खेती किसानी को नए आयाम देते कर्मयोगी Jai Prakash

90 वर्षीय रामचंद्र बसेवाल इस उम्र में भी बिल्कुल स्वस्थ है। पैदल चलते है, एक बार खेती- बाड़ी संभालने पैदल चलकर खेत में जरूर पहुंचते है। साधा खाना लेते है। अपने कपड़े कभी दर्जी से नहीं सिलवाते। खुद बिना मशीन के सूई धागे से सिलते है वो भी बिना फीते के, हाथ के अंदाजे से।

नब्बे की उम्र पाते रामचंद्र बसेवाला बुढ़ापा पेंशन भी नहीं लेते। वे इस पेंशन को मेहनत की नेक कमाई नहीं मानते। इसलिए ये पैसा लेने का मन नहीं करता इनका। जो है उसी में संतोष करते है, बिल्कुल साधा जीवन जीते है, अपने कपड़े खुद सिलते है, ऐसा भी नहीं है घर आर्थिक रूप से सशक्त है, दम है, लेकिन अपनी आत्मा की आवाज सुनते है और रूखी-सूखी रोटी से गुजारा ही सही मानते है, एक बार खुद के खाते में आए 12500 रुपए लौटाने खुद बैंक पहुंचे और बोले ये मेरे नहीं है वापस निकालो।

ये भी पढ़े: Blind Faith: बाबाओं का झूठा बल, अंधविश्वास का दलदल

गांव बड़वा के भालाराम के इकलौते पुत्र रामचंद्र बसेवाल आज इस उम्र में भी बिल्कुल स्वस्थ है, जीवन में कभी चाय नहीं पी। यहीं नहीं इनके घर पर भी चाय कभी कभार बनती है वो भी अब नई पीढ़ी की वजह से। शादी ब्याह का खाना लेने से परहेज करते है। वो बताते है कि उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया है। तीन शादियां कर चुके रामचंद्र बसेवाल कहते है एक समय इनकी पुश्तैनी जमीन गांव के सेठों ने कूडक कर ली (कर्जे की वजह से जमीन गिरवी होना) लेकिन इन्होंने अपनी मेहनत से 12 एकड़ जमीन खरीदी। आज के आधुनिक दौर में साधे जीवन की मिसाल पेश करते रामचन्द्र बसेवाल सत्यता, ईमानदारी और कर्मठता की प्रतिमूर्ति है। जिन से सीख लेकर हमारा समाज निसंदेह बहुत सुंदर और मजबूत हो सकता है।

By Javed

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

कलयुग के 11 कड़वें सच.! जिसे आपको जरूर जानना चाहिए मुंबई की हसीना तारा ढिल्लों ने पाकिस्तानी अंकल से किया निकाह बॉलीवुड एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया की बढ़ी मुश्किलें, एड के रडार पर एक्ट्रेस राकुलप्रीत सिंह को लेकर बुरी ख़बर, वर्कआउट के दौरान हुआ हादसा इस खूबसूरत एक्ट्रेस का प्राइवेट वीडियो हुआ लीक, ट्रोलर्स को दिया करारा जवाब