Sambhal: सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी, जिन्हें ग़ाज़ी मियाँ के नाम से भी जाना जाता है, 11वीं शताब्दी के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे। उनका जन्म 1014 ईस्वी में अजमेर में हुआ था, और वे महमूद ग़ज़नवी के भांजे थे। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अभियानों का नेतृत्व किया। 1026 में, उन्होंने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, जहाँ व्यापक विनाश और लूटपाट हुई। 1030-31 के आसपास, वे उत्तर प्रदेश के बहराइच क्षेत्र में पहुँचे, जहाँ श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में 21 राजाओं की संयुक्त सेना ने उनका सामना किया। 1034 में चित्तौरा झील के पास हुए इस युद्ध में सालार मसूद मारे गए।
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हाल ही में, उत्तर प्रदेश के संभल जिले में सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की याद में आयोजित होने वाले ‘नेजा मेले’ पर विवाद उत्पन्न हुआ है। संभल के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) श्रीश चंद्र ने मेले की अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा कि सालार मसूद एक आक्रमणकारी थे, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर को लूटा था, और ऐसे लुटेरे की याद में कार्यक्रम आयोजित नहीं होने चाहिए। इस बयान के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं; समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने सालार मसूद को सूफी संत बताते हुए एएसपी के बयान की आलोचना की है और उनकी बर्खास्तगी की मांग की है।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रधारक दल ने बहराइच में स्थित सैयद सालार मसूद की दरगाह पर लगने वाले मेले पर रोक लगाने और दरगाह के न्यायिक सर्वेक्षण की मांग करते हुए प्रदर्शन किया है। इन विवादों के बीच, सालार मसूद ग़ाज़ी की ऐतिहासिक भूमिका और उनके प्रति विभिन्न समुदायों की मान्यताएँ चर्चा का विषय बनी हुई हैं। सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की दरगाह, जहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग श्रद्धा व्यक्त करते हैं।