Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को संदर्भित करता है। इस विशेष दिन पर विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का महत्व अत्यधिक माना जाता है, जिससे समस्त कष्टों का नाश होता है और शुभकामनाओं की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना करने से सारे कष्ट, रोग, दोष निवारण होता हैं। साथ हीं, मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती है।
धृति और शूल योग बनते है इस दिन
इस विशेष एकादशी के दिन धृति और शूल योग के साथ कृतिका नक्षत्र भी रहेगा, जो इस तिथि को और भी शुभ बनाता है। इस दिन व्रत रखने से पृथ्वी पर सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं और इसके साथ ही 84000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल मिलता है। यह एकादशी आषाढ़ महीने की पहली एकादशी होती है।
कब है योगिनी एकादशी?
जानकारी के मुताबिक, योगिनी एकादशी तिथि की शुरुआत 1 जुलाई सुबह 10बजकर 12 मिनट से होने जा रही है। इसका समापन अगले दिन यानी 2 जुलाई सुबह 09 बजकर 23 मिनट में हो रहा है। उदया तिथि को मानते हुए एकादशी का व्रत 2 जुलाई को ही रखा जाएगा। 02 जुलाई सुबह 05 बजकर 11 मिनट से लेकर 08 बजकर 43 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहने वाला है।
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इस दिन इन नियमों का पालन करने से होगा शुभ
- एकादशी तिथि में भगवान विष्णु की विधि विधान के साथ पूजा आराधना की जाती है।
- एकादशी तिथि के 1 दिन पहले सात्विक भोजन करना चाहिए।
- एकादशी के 1 दिन पहले नाखून दाढ़ी बाल आदि कटवा लें चाहिए।
- अगले दिन यानी एकादशी तिथि के दिन चावल का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिए। साथ ही, व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा आराधना करें।
- इस तिथि के दिन रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए, इससे लक्ष्मी नारायण प्रसन्न होते हैं। घर में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है।
- इसके पारण यानी अगले दिन बेहद खास होता है। द्वादशी तिथि को सुबह स्नान कर सूर्य भगवान को जल अर्पण कर ही पारण करना चाहिए। तुलसी का पत्ता प्रसाद के रूप में ग्रहण कर एकादशी का पारण करें।
जानें पूजा विधि
- योगिनी एकादशी के शुभ दिन पर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और विधिपूर्वक उनकी पूजा-अर्चना करें।
- इस व्रत में दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। आप गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन दान कर सकते हैं तथा ब्राह्मणों को भोजन करा सकते हैं।
- इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें, जिसमें लहसुन, प्याज, मसूर और चने आदि का सेवन वर्जित होता है।
- रात्रि में जागरण करके भगवान विष्णु के भजनों का उच्चारण करें।
- अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद पारण करके भोजन ग्रहण करें।
Yogini Ekadashi की क्या है कथा
स्वर्गलोक में राजा कुबेर के एक माली, हेम, प्रतिदिन पूजा के लिए सुंदर फूल लाते थे। एक दिन, लौटने में देरी होने पर क्रोधित राजा कुबेर को हेम ने ईश्वर से बढ़कर पत्नी के प्रति आसक्ति दिखाई। इससे कुपित होकर राजा ने हेम को श्राप दिया – स्वर्ग से पतन तथा धरती पर कुष्ठ रोग और पत्नी वियोग का कष्ट। वर्षों कष्ट सहने के बाद हेम का मार्कण्डेय ऋषि से संयोग हुआ। ऋषि ने उन्हें योगिनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया। विधि-विधान से व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने पर हेम के पापों का नाश हुआ और उन्हें पुनः स्वर्गलोक लौटने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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