Devil Comet: प्राचीन समय से ही आकाश में छाए रहे कॉमेट्स हमें अपनी अनोखी और रहस्यमयी प्रकृति से प्रेरित करते रहे हैं। इनमें से एक कॉमेट है, जिसे “डेविल कॉमेट” के नाम से जाना जाता है, जो आकाशीय महोत्सव में अपनी अभूतपूर्व और भयानक उपस्थिति के साथ पहुंचा है। कॉमेट 12P/Pons-Brooks, जिसे “ड्रैगन्स की माँ” कॉमेट के रूप में भी जाना जाता है, अब उत्तरी गोलार्ध में दिखाई दे रहा है, जो लगभग 70 वर्षों के बाद की पहली बार है।
क्यों पड़ा इसका डेविल कॉमेट नाम
12पी/पॉन्स-ब्रक्स यानी दानव धुमकेतु का असामान्य वातावरण अष्ययन का विषय बना हुआ है। इसपर लगातार बड़े आणविक विस्फोट होते हैं और ज्वालाएं उठती हैं। अब तक हुए अध्ययन के मुताबिक यह धूमकेतु सिर्फ गैसों के गुबार से बना है मगर यह एक पिंड की तरह काम करता है। ज्वलनशील गैसों के उच्च दबाव से ही इसपर दो सींग जैसी आकृति बनी हुई है। इसका डेविल नाम पड़ने के पीछे भी यही वजह है।
यह भी पढ़े: Samsung Galaxy S24 Ultra: कैमरें के शौकीन लोगों के लिए क्या है खास, जानें
71 सालों लगाता है सूर्य के चक्कर
खास बात ये है कि डेविल कॉमेट सूर्य के हर 71 सालों में चक्कर लगाता है। प्रतीकात्मक कॉमेट को उसके “सिंगे” दिखाई जाने के लिए भी जाना जाता है, और इसलिए उसका उपनाम “डेविल कॉमेट” है। यह प्रसिद्ध कॉमेट भी अपने बाहरी सूर्य सिस्टम से गुजरते समय गैस और धूल की अद्भुत उत्सर्जनों के लिए जाना जाता है।
12P/Pons-Brooks का वैज्ञानिक नाम प्राप्त हुआ है उन दो व्यक्तियों के द्वारा, जिन्होंने पहली बार इसे रात्रि आकाश में पहचाना, जीन-लूई पॉन्स 1812 में, और विलियम ब्रुक्स 1883 में। कॉमेट एक बर्फ, धूल और पत्थर के संघटन से बना होता है, जिसमें बर्फ सूर्य के पास आते ही ठोस से गैस में परिवर्तित होती है। धरती.कॉम के सतह से गैस और धूल को प्रोत्साहित करती है और एक विशाल बादल और एक विशिष्ट पूंछ बनाती है।
यह भी पढ़े: Train Incident: हमसफर एक्सप्रेस की छत पर लेट कर सफर करता दिखा युवक, बाल-बाल बची जान
क्रायोवोल्केनिक कॉमेट
12P/Pons-Brooks का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इसे क्रायोवोल्केनिक कॉमेट माना जाता है, जिन्हें उनके क्रायोवोल्केनों के लिए भी जाना जाता है। जब कॉमेट परंतु गर्मी बढ़ती है, तो इसके भीतरी उष्मा बनती है, जिससे कॉमेट के अंतरिक्ष के भीतर लवणीय सामग्री वाष्प होती हैं और फैलती हैं। यह प्रक्रिया फिर कॉमेट की
क्या है 8 अप्रैल और 21अप्रैल को
৪ अप्रैल को पड़ने वाले पूर्ण सूर्यग्रहण के वर्त दुनिया के प्रभावित इलोकों में दानव धूमकेतु दिन के समय भी देखा जा सकंगा। इसके अलावा यह 21 अप्रैल की सूर्य के सबसे करीब पहुंचने पर भी नजर आएगा। तब इसकी दूरी सूर्य से 1168 लाख किमी होगी इसके 42 दिनों बाद यानी जून महीने में यह पृथ्वी के करीब से गुजरेगा। हालांकि उस समय इसे सिर्फ दक्षिणी गोलार्ध से देखा जा सकेगा।
यह भी पढ़े: Delhi Liquor Scam: संजय सिंह की मिली राहत, आखिर कौन-सी शर्तों पर तय हुई जमानत
काशी के ऐस्ट्रो ब्बॉय वेदांत पांडेय भी इसकी निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी सूर्यास्त के बाद पश्चिमी आकाश पर 15 डिग्री की उच्चाई पर इस देखा जा सकता है। आसमान साफ होने पर यह खुली आंखो से भी दिखेगा। अभी यह आधे से एक घंटे तक दिखाई देगा। पथ्वी और सूर्य के और ज्यादा करीब आाने पर इसका समय और बढ़ेगा।
यह भी पढ़े: Taiwan Earthquake: 25 सालों में सबसे खतरनाक भूकंप, जापान और फिलीपींस में जारी सुनामी अलर्ट