MLA Surendra Kushwaha: विधायक बनने के बाद अमूमन नेताओं का रहन सहन और तौर तरीका बदल जाता है। खासकर यूपी बिहार में ये चलन आम है। लेकिन कभी कभी भीड़ में कुछ चेहरे अपनी अलग छाप छोड़ जाते हैं। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता स्वामीप्रसाद मौर्या को जमीन दिखाने वाले फाजिलनगर के विधायक सुरेन्द्र कुशवाहा (MLA Surendra Kushwaha) का भी कुछ यही हाल हैं जिन्होंने विधायक पद का वेतन लेने से इनकार कर दिया है।
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दसवीं की क्लास में पढ़ा रहे ये शिक्षक कोई आम शिक्षक नहीं बल्कि इलाके के विधायक हैं। नाम है सुरेन्द्र कुशवाहा….जो स्वामीप्रसाद मौर्य जैसे हैवीवेट नेता को हराकर विधानसभा पहुंचे हैं। पेशे से सहायक अध्यापक सुरेन्द्र कुशवाहा चाहते तो औरों की तरह पांच साल की अवैतनिक छुट्टी लेकर विधायकी का आनन्द ले सकते थे मगर इनके भीतर के शिक्षक ने इसकी गवाही नहीं दी….सो विधायकी का वेतन त्याग कर ले रहे हैं शिक्षक का वेतन….और शिक्षक होने का दायित्व भी निभा रहे हैं। रोज सुबह दस बजे विद्यालय में पहुंचकर हाजिरी देना और फिर जितनी कक्षाएं पढ़ाने का जिम्मा है उसे पूरी करना……विद्यालय के समय के बाद क्षेत्र में समय देना….ये रोज की दिनचर्या का हिस्सा है।

सुरेन्द्र कुशवाहा के मुताबिक वो अपना अधिकतम समय बच्चों को देना चाहते हैं क्योंकि ये उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि भले ही विधायक बन गए मगर बच्चों का कोर्स समय से पूरा होना चाहिए। रही बात सदन चलने की तो उस दौरान ये अवैतनिक अवकाश पर रहेंगे। शिक्षक के रुप में विधायक को अपने बीच पाकर बच्चे भी गदगद हैं।
दरअसल फाजिलनगर के विधायक सुरेन्द्र कुशवाहा पावानगर महावीर इंटर कॉलेज में सामाजिक विज्ञान के अध्यापक हैं। लिहाजा विधायक चुने जाने के बाद भी उनकी प्राथमिकता उनके बच्चे हैं। कॉलेज के प्रिंसिपल भी विधायक सुरेन्द्र कुशवाहा की इस पहल के मुरीद हो चुके हैं।
यूपी ही नहीं देश की सियासत में ऐसे बहुतेरे शिक्षकों ने राजनीति में हाथ आजमाया और कामयाब भी रहे। एसपी सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव, प्रो0 रामगोपाल यादव समेत पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीशचंद्र द्विवेदी तक सैकड़ों उदाहरण हैं, लेकिन विधायक बनने के बावजूद अपने शिक्षक धर्म को निभाने वाले उदाहरण कम ही हैं।