Supreme Court on Lawyers

Supreme Court on Lawyers: वकीलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला। कोर्ट ने अपने आज के ऑर्डर में साफ किया है कि वकीलों पर उनकी खराब सेवा या पैरवी की वजह से कंज्यूमर कोर्ट (उपभोक्ता अदालतों) में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। आमतौर पर किसी पेशेवर शख्स से शिकायत होने पर लोग कंज्यूमर कोर्ट के दरवाजे खटखटाते हैं। मगर अब वकीलों पर ये प्रवाधान लागू नहीं होंगे। अदालत ने माना कि वकालत का पेशा व्यापार से अलग है और ये कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट 1986 (उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986) के दायरे में नहीं आता।

क्या है कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट 1986

कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 भारतीय संघ की एक महत्वपूर्ण कानूनी धारा है जो 1986 में पारित किया गया था। इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की सुरक्षा और हितरक्षा है। यह उनकी हितैषी या न्यायाधीन दावों के संरक्षण, उपभोक्ता धारा में उनके अधिकारों की स्थिरता और अधिकारियों के प्रति उनकी जिम्मेदारी को सुनिश्चित करना है। इस एक्ट के तहत, उपभोक्ताओं के लिए विभिन्न प्रकार के उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता, मूल्य, और सेवा प्रदान की सामग्री के बारे में मानकों की निर्धारण और अनुकूलन के लिए प्रावधान है। इसके अलावा, यह उपभोक्ताओं को दोषी उत्पादों या सेवाओं के खिलाफ उनके अधिकार के लिए न्याय खोजने की सुविधा भी प्रदान करता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ किया है कि वकीलों पर उनकी खराब सेवा और खराब पैरवी के चलते कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। कोर्ट का कहना है कि वकालत का पेशा बिजनेस और व्यापार से अलग है। ये कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट 1986 के दायरे में नहीं आता है। इसलिए कंज्यूमर कोर्ट में वकीलों के खिलाफ शिकायत नहीं की जा सकती है।

कैसे मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट में बार काउंसिल ऑफ इंडिया, दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और बार ऑफ इंडियन लायर्स जैसी संस्थाओं ने याचिका लगाई थी। इस याचिका में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी – National Consumer Disputes Redressal Commission) के 2007 के फैसले को चुनौती दी गई थी। एनसीडीआरसी ने अपने फैसले में कहा था कि वकील और उनकी सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के दायरे में आती हैं। एनसीडीआरसी के इसी फैसले से वकीलों से जुड़े संस्थानों को आपत्ति थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि वकील या लीगल प्रैक्टिशनर, डाक्टरों और अस्पतालों की तरह अपने काम का विज्ञापन नहीं कर सकते। इसलिए उनकी सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत नहीं लाया जा सकता।

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